Tuesday 4 April 2017

ग़ज़ल- फिर आ जाओ रिमझिम सी बरसात लिये

मेरी छत पर पूनम की इक रात लिये।
फिर आ जाओ रिमझिम सी बरसात लिये।।

यादों की गलियाँ कब तक यूँ महकेंगी।
सूखे फूलों की तेरी सौगात लिये।।

शबे तार है वीरानी है तन्हाई है।
कब तक भटकूँ अफ़सुर्दा हालात लिये।।

अक़्सर आँसू आंखों में आ जाते हैं।
वही पुरानी तेरी कोई बात लिये।।

शबे वस्ल में माहताब के दरवाजे पर।
हम आये हैं तारों की बारात लिये।।

तुम आओगे फ़लक नूर बरसायेगा।
मैं बैठा हूँ कितने ही जज़्बात लिये।।

                        ✍ डॉ पवन मिश्र
शबे तार= अंधेरी रात
अफ़सुर्दा= खिन्न, उदास
शबे वस्ल= मिलन की रात
नूर= प्रकाश

No comments:

Post a Comment