Friday 19 May 2017

ग़ज़ल- चलो इस जंग में तुम पर इनायत यार हो जाए


चलो इस जंग में तुम पर इनायत यार हो जाए।
कि जीतो तुम हमारा दिल हमारी हार हो जाए।।

इयादत के बहाने ही अगर दीदार हो जाए।
तो रोजेदार आँखों का सनम इफ़्तार हो जाए।।

न रोको अश्क़ आँखों में सदायें दिल की आने दो।
*बुरा क्या है हकीकत का अगर इज़हार हो जाए*।।

करीने से सजा लेना नज़र पे कोई चिलमन तुम।
कहीं ऐसा न हो नजरें मिलें और प्यार हो जाए।।

मनाएं ईद हम कैसे रिवाजों में वो उलझा है।
खुदा थोड़ी सी रहमत कर हमें दीदार हो जाए।।

हवस की नींद में डूबा है अपना राहबर यारों।
करो ऐसी बगावत रहनुमा बेदार हो जाए।।

लिये पत्थर खड़े हैं सब खियाबाँ रौंद डाला है।
पवन की इल्तिज़ा फिर से इरम गुलज़ार हो जाए।।

                                  ✍ डॉ पवन मिश्र

इयादत= रोगी का हाल पूछने और उसे दिलासा देने हेतु जाना
हवस= लोभ, लालच           राहबर= राह दिखाने वाला
बेदार= जागना।                 खियाबाँ= बाग
इल्तिज़ा= प्रार्थना।              इरम= स्वर्ग

*अर्श मलसियानी साहब का मिसरा

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