Monday 5 June 2017

ग़ज़ल- कोई न आये


आप जैसा रहनुमा कोई न आये।
दिल दुखाने बेवफ़ा कोई न आये।।

जख़्म भरने की कवायद में लगा हूँ।
बस पुराना वाकिया कोई न आये।।

मुद्दतों के बाद गुल खिलने लगे हैं।
ऐ खुदा अब ज़लज़ला कोई न आये।।

हर गलतफहमी मिटा दूँगा मैं लेकिन।
*शर्त ये है तीसरा कोई न आये*।।

हूँ बहुत तन्हा अज़ब सी ख़ामुशी है।
दूर तक मुझको सदा कोई न आये।।

रोज तकता डाकिये की राह, लेकिन।
खत पवन के नाम का कोई न आये।।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र
*समर साहब का मिसरा

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