Sunday 2 July 2017

ग़ज़ल- नाम लेता है


खुदा का नाम ये बन्दा तो सुबहो शाम लेता है।
कोई पूछे खुदा है क्या तो तेरा नाम लेता है।।

जिसे तुम छोड़ आये थे ज़माने की रवायत में।
वो आशिक आज भी अक्सर तुम्हारा नाम लेता है।।

अगर मुझसे मुहब्बत है तो साहिल पे खड़ा है क्यूँ।
वो आकर क्यूँ नहीं पतवार, क़श्ती थाम लेता है।।

समझ पे ताले जड़ जाते बीमारी इश्क़ है ऐसी।
लगी जिसको भला कब अक्ल से वो काम लेता है।।

न साकी चाहिये मुझको न चाहत मैकदे की ही।
पवन मदहोश है ये बस नज़र के जाम लेता है।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र

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