Tuesday 11 July 2017

ताटंक छन्द- अमरनाथ श्रद्धालुओं पर हमले के संदर्भ में

(अमरनाथ श्रद्धालुओं पर 10/07/17 को हुए हमले के संदर्भ में)

दहशतगर्दी फिर चिल्लाई, भाड़े के हथियारों से।
देखो माँ की छाती फिर से, छलनी है गद्दारों से।।
गूंज रही थी सारी घाटी, हर हर के जयकारों से।
घात लगाकर गीदड़ आये, जेहादी दरबारों से।१।

शर्म जरा सी भी ना आई, उन श्वानों के ज़ायों को।
हरि भक्तों पर घात लगाया, मार दिया असहायों को।।
आखिर क्यूँ दिल्ली की अब भी, बंदूकों से दूरी है।
कुत्ते की दुम सीधी करने, की कैसी मजबूरी है।२।

गांधी के बन्दर जैसा ही, गर मोदी भी गायेगा।
छप्पन इंची सीने का फिर, मतलब क्या रह जायेगा।।
पकड़ गिरेबाँ खींच निकालों, उन कुत्सित हत्यारों को।
जीप छोड़ कर लटकाओ अब, फंदे से गद्दारों को।३।

चुन चुन कर हर छाती रौंदों, नृत्य करो अरिमुण्डों पे।
न्यायालय भी बन्द करे अब, दया दिखाना गुंडों पे।।
ये विषधर के वंशज सारे, अपना रंग दिखायेंगे।
दूध पिला लो चाहे जितना, इक दिन ये डस जाएंगे।४।

सेना को आदेश करो तुम, अब तो रण छिड़ जाने दो।
रौद्र रूप धर जगदम्बा को, अरि का रक्त बहाने दो।।
क्षत विक्षत पापी का तन जब, हिमखण्डों पर छायेगा।
फिर बाबा बर्फानी के घर, हत्यारा ना आयेगा।५।

                                            ✍ डॉ पवन मिश्र

(अमरनाथ श्रद्धालुओं पर 10/07/17 को हुए हमले के संदर्भ में)

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