Saturday 23 September 2017

ग़ज़ल- मुझे मालूम न था


उनकी झूठी है अदावत मुझे मालूम न था।
यूँ भी होती है सियासत मुझे मालूम न था।।

मेरे हुजरे में चले आये हिजाबों के बिना।
*यूँ भी आती है कयामत मुझे मालूम न था*।।

बेजुबाँ दिल भी लगा चीखने उनकी ख़ातिर।
इसको कहते हैं मुहब्बत मुझे मालूम न था।।

अब तलक दिल की ही सुनता मैं रहा लेकिन।
वो भी कर देगा बगावत मुझे मालूम न था।।

छोड़ जाएंगे अकेला युँ जमाने में मुझे।
होगी इस दर्जा शिकायत मुझे मालूम न था।।
                             ✍ डॉ पवन मिश्र

हुजरा= व्यक्तिगत कक्ष
हिजाब= नकाब, पर्दा

**फ़िराक गोरखपुरी साहब का मिसरा

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