Sunday 5 November 2017

ग़ज़ल- ख़्वाब बाकी है इक दीवाने का


वक्त आया नहीं है जाने का।
ख़्वाब बाकी है इक दीवाने का।।

तोड़कर घोंसला दीवाने का।
क्या भला हो गया जमाने का।।

आओ बैठो जरा करीब मेरे।
ख़्वाब देखा है घर बसाने का।।

तैरते तैरते कहां जाऊँ।
अब इरादा है डूब जाने का।।

रूठ के अब जुदा न होना तुम।
हौसला अब नहीं मनाने का।।

मोल कुछ भी नहीं मिलेगा पवन।
आंसुओं को यहां बहाने का।।
           
             ✍ डॉ पवन मिश्र

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