Sunday 12 November 2017

कहूँ लेखनी से कैसे मैं, लिखो आज श्रंगार

(सरसी छन्द आधारित रचना)

गली-गली अब घूम रहे हैं, देखो रंगे सियार।
अर्थ काम तक ही सीमित है, इनका हर व्यवहार।।
सोन चिरइया लूट रहे जब, माटी के गद्दार।
कहूँ लेखनी से कैसे मैं, लिखो आज श्रंगार ?

बिलख रहे हैं भूखे बालक, रोटी की ले चाह।
वंचित बचपन भटक रहा है, कौन दिखाये राह।।
चुभती है सीने में मेरे, उनकी करुण पुकार।
कहूँ लेखनी से कैसे मैं, लिखो आज श्रंगार ?

माली ही जब पोषित करता, सारे खर-पतवार।
किससे जाकर पुष्प कहें तब, मन पर क्या है भार ?
अनदेखा कैसे मैं कर दूँ, काँटों का व्यभिचार।
कहूँ लेखनी से कैसे मैं, लिखो आज श्रंगार ?

नेताओं की कोरी बातें, झूठ मूठ बकवास।
नहीं इन्हें परवाह देश की, बस सत्ता की प्यास।।
जब शोषित जनता का स्वर बन, करना है प्रतिकार।
कहूँ लेखनी से कैसे मैं, लिखो आज श्रंगार ?

                               ✍ डॉ पवन मिश्र

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