Sunday 28 June 2020

ग़ज़ल- मैं वंचित की बात करूंगा


महबूबा पर गीत लिखो तुम चाहे चांद सितारों पर।
मैं वंचित की बात करूंगा, लिक्खूंगा सरकारों पर।।

लोकतंत्र का भार टिका है झूठे और मक्कारों पर।
मंडी में बिक जाने वाले रँगे-पुते अखबारों पर।।

नेताओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाने से पहले।
बोलो तुमने कितनी बारी सर फोड़ा दीवारों पर??

कल तक गाली देते थे जो पानी पी पी वेदों को।
वेदशक्ति अब बेच रहे हैं नजर टिकी बाजारों पर।।

आपस में कर लीं गलबहियां देखो सारे चोरों ने।
जिम्मेदारी अब ज्यादा है घर के चौकीदारों पर।।

सागर की नादां लहरों को शायद अब ये भान नहीं।
मझधारों ने दम तोड़ा है लकड़ी की पतवारों पर।।

बगिया में सुंदर फूलों हित नियम बदलने ही होंगे।
कब तक जाया होगी मिहनत केवल खर-पतवारों पर।।

राहे इश्क़ बहुत पेंचीदा, हर पग मुश्किल है लेकिन।
आओ थोड़ा चलकर देखें दोधारी तलवारों पर।।

✍️ डॉ पवन मिश्र

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