Sunday 8 May 2016

नवगीत- माँ पर कुछ लिखना है


इक कठिन परीक्षा
आन पड़ी
लेखन की कैसी
विकट घड़ी
आज कहा जब
आकर उसने
माँ पर कुछ लिखना है

हे मातु शारदा
कृपा करो
शब्दों में
मन के भाव गढ़ो
प्रेम तपस्या त्याग
में गुँथकर
रचना को दिखना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

हे लम्बोदर
हे शिव प्यारे
प्रारम्भ करो
आया द्वारे
है आह्वाहन
लेकर आओ
शब्दकोश जितना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

भाव असीमित
अंतर्मन में
माँ ही मन में
माँ जीवन में
शब्द कहाँ से
मैं ले आऊँ
ज्ञान नहीं इतना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

शब्दों मे
आकाश बाँध लूँ
जलधि तरंगे
कहो साध लूँ
लेकिन जब
लिखना है माँ पर
पवन शून्य कितना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

✍डॉ पवन मिश्र

4 comments:

  1. बहुत खूब ...अग्रसर रहिए ।।।

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  2. बहुत खूब ...अग्रसर रहिए ।।।

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