Monday 9 May 2016

वागीश्वरी सवैया- अँधेरा छटे औ दिखे राह कोई


प्रभो प्रार्थना आज स्वीकार लो ये।
तुम्हारे सिवा और जायें कहाँ।।

अँधेरा छँटे औ दिखे राह कोई।
करो आज ऐसा उजाला यहाँ।।

दुखों की कटे रात आये सवेरा।
यही चाहता देख सारा जहां।।

छुपे हो कहाँ नाथ ये तो बता दो।
तुम्हे ढूंढता मैं यहाँ से वहाँ।।

       ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- सात यगण + लघु गुरु (१२२×७)+(१२)



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