Wednesday 11 October 2017

ग़ज़ल- तुम्हारे बिन कहीं मधुबन नहीं है


तुम्हारे बिन कहीं मधुबन नहीं है।
घटायें हैं मगर सावन नहीं है।।

गए हो छोड़कर जिस दिन से हमको।
ये दिल तो है मगर धड़कन नहीं है।।

गलतफहमी उसी को हो गयी कुछ।
मेरी उससे कोई अनबन नहीं है।।

सुकूँ की नींद आ जाये हमे बस।
सिवा इसके कोई उलझन नहीं है।।

अभी तो दूर है मंज़िल हमारी।
युँ थकने के लिये जीवन नहीं है।।

सपोलों दूर रहना इस पवन से।
तेरी खाला का ये चन्दन नहीं है।।

                 ✍ डॉ पवन मिश्र

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