Sunday 15 October 2017

ग़ज़ल- तुम आ गए हो तो कोई जवाब दे जाओ


नहीं जो आब मिले तो सराब दे जाओ।
तुम आ गए हो तो कोई जवाब दे जाओ।।
आब= पानी    सराब= मृगतृष्णा

अभी न बात करो ज़ख्म की न आंसू की।
सुहाग रात है कोई गुलाब दे जाओ।।

बहुत अजीब हैं दस्तूर तेरी महफ़िल के।
मुझे भी रहना है कोई नक़ाब दे जाओ।।

कई दफ़ा वो मुझे अजनबी से लगते हैं।
समझ सकूँ उन्हें ऐसी किताब दे जाओ।।

अगर है जाना तुम्हे तो करो इनायत ये।
यहां जो खोया जो पाया हिसाब दे जाओ।।

ये माहताब भी ढलका हुआ सा लगता है।
*उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ*।।
माहताब= चन्द्रमा

कहाँ छुपी मेरी मंजिल किधर हैं राहें गुम।
ये तीरगी है घनी, आफ़ताब दे जाओ।।
तीरगी= अंधेरा    आफ़ताब=सूरज

जो लड़खड़ा के गिरूंगा तो थाम लेंगे वो।
सुनो हुजूर पवन को शराब दे जाओ।।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र

**बशीर बद्र साहब का मिसरा

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