Thursday 8 August 2024

ग़ज़ल- फ़क़त गहरा अँधेरा जा-ब-जा है

फ़क़त गहरा अँधेरा जा-ब-जा है
मुख़ालिफ़ हो गया हर रास्ता है

सदाकत तो खड़ी है दूर तन्हा
मगर झूठों का लम्बा काफ़िला है

सियासत ने पढ़ाया पाठ जबसे
सभी की आँख पर चश्मा चढ़ा है

नहीं है इश्क़ तो इनकार कर दो
ये चुप्पी तो मेरी ख़ातिर सजा है

दिये ने हौसला जबसे दिखाया
हवाओं से बखूबी लड़ रहा है

महज़ कोशिश से ही मंज़िल मिलेगी
पवन की ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है

✍️ डॉ पवन मिश्र

जा-ब-जा= हर जगह
मुख़ालिफ़= विरोधी

No comments:

Post a Comment