Thursday 22 August 2024

गीत- चरखे ने आजादी दे दी, ये कहना बेमानी है

चरखे ने आजादी दे दी ये कहना बेमानी है।

क्रांति यज्ञ में आहुतियों की ये तो नाफ़रमानी है।।


भारत की जनता को जो पैरों से रौंदा करते थे।

निर्ममता की हदें पार कर, भुस खालों में भरते थे।।

अठ्ठारह के खुदीराम को, फांसी पर लटका डाला।

जलियावाला बाग घेरकर, लोगों को मरवा डाला।।

बहन-बेटियों की इज्जत का, मान नहीं जो रखते थे।

छुद्र वासना से हटकर कुछ, भान नहीं जो रखते थे।।

पेड़ों से लाशें लटका कर, अनुशासन जो गढ़ते थे।

लाठी, तोप-तमंचों की जो भाषा बोला करते थे।।

उन दुष्टों का पापी घट क्या, सहलाने से फूट गया ?

अंग्रेजों का दमनचक्र क्या, सत्याग्रह से टूट गया ??

यदि ऐसा तुम सोच रहे तो, सच में ये नादानी है।

चरखे ने आजादी दे दी, ये कहना बेमानी है।१।


बैरकपुर से ज्वार उठा था, तब थर्राया था लंदन।

वंदे का जब स्वर गूंजा था, तब घबराया था लंदन।

लक्ष्मीबाई की तलवारों ने जब चमक बिखेरी थी।

भारत के चप्पे चप्पे से, गूंजी जब रणभेरी थी।।

जब काला पानी ने आजादी का मंत्र पुकारा था।

जब तिलक गोखले अरबिंदो ने गोरों को ललकारा था।।

जब बिस्मिल सुभाष शेखर ने, अंग्रेजों का मद तोड़ा।

जब बहरों पर भगत सिंह ने, इंकलाब का बम फोड़ा।।

तब जाकर आई आजादी, भारत के दुर्दिन बीते।

कैसे कह दूं मात्र अहिंसा से अंग्रेजी घट रीते।।

किसी एक को नायक कहना, सत्य नहीं मनमानी है।

चरखे ने आजादी दे दी, ये कहना बेमानी है।२।


क्रांति यज्ञ में लाखों आहुतियों से ज्वाला धधकी थी।

आजादी के नवप्रभात की रश्मिकिरण तब चमकी थी।।

चंपारण भी उसी यज्ञ हित आहुति लेकर आया था।

उसने भी स्वातंत्र्य समर में, जौहर खूब दिखाया था।।

उनके सम्मुख नत है माथा, कोटि-कोटि अभिनन्दन है।

अंतस से उनको अभिवादन, उनका शत-शत वन्दन है।।

लेकिन वो भी उस माला के इक मोती जैसे ही थे।

लाखों माओं के सुत जिसमें, आपस में थे गुथे हुवे।।

कुत्सित राजनीति ने लेकिन अपना रंग दिखा डाला।

सत्ता हित महिमा-मंडन का सारा खेल रचा डाला।।

आजादी के पुण्य यज्ञ की ये तो नाफ़रमानी है।

चरखे ने आजादी दे दी ये कहना बेमानी है।३।


अनगिन बलिदानों के फलतः दिन आजादी का आया।

लेकिन क्यों गौरव गाथा में नाम एक का ही छाया।।

अंतस से अभिनन्दन उनका, शत-शत बार प्रणाम उन्हें।

लेकिन क्यों आवश्यक देना, राष्ट्रपिता का नाम उन्हें।।

माना इक कुटुंब के जैसे, भारत का परिवार बना।

आजादी के बाद प्रगति का, माना वो आधार बना।।

सूखे वृक्षों पर वर्षा में, नव पल्लव ज्यों खिलते हैं।

वैसे ही परिवार सृजन में, नव सम्बन्धी मिलते हैं।।

लेकिन चाचा और पिता का, क्यों बोलो बस नाम बढ़ा।

आखिर क्यों तब ताऊ-फूफा, मामा-बेटा नहीं गढ़ा।।

केवल श्रेय हड़पने की ये कोरी कारस्तानी है।

चरखे ने आजादी दे दी ये कहना बेमानी है।४।


✍️ डॉ पवन मिश्र

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