Tuesday 13 August 2024

ग़ज़ल- यादों के नश्तर नुकीले हो गए

यादों के नश्तर नुकीले हो गए

रेशमी रूमाल गीले हो गए


हाथ पर मेंहदी रचा कर आज वो

देख लो कितने रँगीले हो गए


कल तलक सब कुछ मधुर था दरमियाँ

आज हम कड़वे-कसीले हो गए ?


हद हरिक कमतर हमें लगने लगी

इश्क में जब से हठीले हो गए


सुर्ख़रू लब उनके छूकर ऐ पवन

होंठ मेरे भी रसीले हो गए


✍️ डॉ पवन मिश्र

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