Friday 2 September 2016

ग़ज़ल- इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ


इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।
हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।

क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।
साथ उसके गर न हो परछाईयाँ।।

चाहता हूं डूबना आगोश में।
ऐ समंदर तू दिखा गहराईयाँ।।

दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?
रात भर बजती रही शहनाईयाँ।।

तुम गये तो जिंदगी तारीक है।
हो गयी दुश्मन सी अब रानाईयाँ।।

दूर हो जाये जड़ों से ये 'पवन'।
ऐ खुदा इतनी न दे ऊँचाईयाँ।।

                 ✍ डॉ पवन मिश्र

बशर= आदमी
तारीक= अंधकारमय

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