Saturday 11 June 2016

ताटंक छन्द- राजनीति


राजनीति की गन्दी गलियां, तुमको आज दिखाता हूँ।
स्वार्थ वशी कुछ गद्दारों की, करतूतें बतलाता हूँ।।
जनसेवा वो भूल गए हैं, दिल ही उनका काला है।
राजनीति के पुण्य पंथ को, अब दूषित कर डाला है।१।

जाति धर्म की खाद मिला कर, ये जो फसलें बोते हैं।
उनके गन्दे फल का बोझा, नन्हें पौधे ढोते हैं।।
तुष्टिकरण ही मूल मन्त्र है, राजनीति के पण्डों का।
जब चाहे ये सौदा करते, भारत के भू खण्डों का।२।

राजनीति में उथली बातें, जो जितनी कर लेता है।
भारत का वह भाग्य विधाता, वो ही अव्वल नेता है।।
आज बना वो खुद मुखिया अरु, बेटा उसका भावी है।
देश प्रेम तो कोरी बातें, पुत्र मोह बस हावी है।३।

सत्ता के गलियारों में तो, शब्द गढ़े नित जाते हैं।
अक्सर झूठे नारों के ही, भोग लगाए जाते हैं।।
नारों में ही हटी गरीबी, वतन तरक्की करता है।
किसको चिंता है गरीब की, जो तिल-तिल कर मरता है।४।

बिलियन ट्रिलियन अर्थ व्यवस्था, लेकिन होरी भूखा है।
नेताओं के ग्लास भरे हैं, लेकिन पनघट सूखा है।।
लोकतंत्र की नैया उसके, नाविक ही उलझाये हैं।
सारे सत्तालोलुप नेता, अमरबेल बन छाये हैं।५।

लेकिन इक दिन राजनीति में, इक अवतारी आयेगा।
गन्दे शूकर अरु कीटों से, वो ही मुक्ति दिलायेगा।
उस दिन ये दलदल भी अपनी, मुग्धा पर इतरायेगा।
इस कीचड़ में जिस दिन यारों, मात्र कमल रह जायेगा।६।

                                                ✍ डॉ पवन मिश्र

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