Sunday 19 June 2016

ग़ज़ल- हमारा दिल


बला की उन अदाओं से मचलता है हमारा दिल।
रहे काबू में फिर कैसे बहकता है हमारा दिल।।

न ख्वाहिश है गुलों की औ न चाहत है खियाबाँ की।
तुम्हारे प्यार से हर पल महकता है हमारा दिल।।

अकेले में जो आती हैं कहाँ की ये सदायें हैं।
तुम्हारी याद है या फिर धड़कता है हमारा दिल।।

तेरे जानू पे सर रख कर लटों से खेलना शब भर।
सुखन की ऐसी रातों को तरसता है हमारा दिल।।

बहुत मजबूर हैं महफ़िल में मुस्काना जरूरी है।
अकेले में तो अक्सर ही सिसकता है हमारा दिल।।

खिलौनों की जगह हाथों में छाले आ गए जिनके।
वो बच्चे देख कर यारों तड़पता है हमारा दिल।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र

खियाबाँ= बाग़
जानू= गोद

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