Sunday, 20 October 2024

ग़ज़ल- आईने में क्या बनाया जा रहा है

आईने में क्या बनाया जा रहा है

हू-ब-हू तुम सा बनाया जा रहा है


आंख केवल है ज़रीआ यार मेरे

दिल तलक रस्ता बनाया जा रहा है


यादों का नश्तर उठाकर हर घड़ी बस

ज़ख्म-ए-दिल गहरा बनाया जा रहा है


रील्स जबसे आ गईं मोबाइलों में

हुस्न को सस्ता बनाया जा रहा है


नाम पर जम्हूरियत के रफ़्ता-रफ़्ता

भीड़ को अंधा बनाया जा रहा है


क्रूरता को छांव देने के लिये

धर्म को मुद्दा बनाया जा रहा है


✍️ डॉ पवन मिश्र

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