आईने में क्या बनाया जा रहा है
हू-ब-हू तुम सा बनाया जा रहा है
आंख केवल है ज़रीआ यार मेरे
दिल तलक रस्ता बनाया जा रहा है
यादों का नश्तर उठाकर हर घड़ी बस
ज़ख्म-ए-दिल गहरा बनाया जा रहा है
रील्स जबसे आ गईं मोबाइलों में
हुस्न को सस्ता बनाया जा रहा है
नाम पर जम्हूरियत के रफ़्ता-रफ़्ता
भीड़ को अंधा बनाया जा रहा है
क्रूरता को छांव देने के लिये
धर्म को मुद्दा बनाया जा रहा है
✍️ डॉ पवन मिश्र
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