आह-ओ-फ़ुग़ाँ फ़रियाद सभी तुम कह दो लेकिन शोर न हो
अपनी चुप्पी मुझ तक आकर तोड़ो लेकिन शोर न हो
रहने दो दुनियावी नाज़ो नख़रे और तअल्ली सब
दिल की बातें कहनी हो तो कह दो लेकिन शोर न हो
रस्मों और रिवाज़ों के सारे बंधन ठुकराकर तुम
जब चाहो मुझसे मिलने आ जाओ लेकिन शोर न हो
रात जवां है, मैं हूँ, तुम हो, चांद-सितारे, सब तो हैं
अपना सर मेरे ज़ानू पे रक्खो लेकिन शोर न हो
हिज़्र उदासी तन्हाई बेचैनी सारे ग़म लेकर
दीवानों, तुमको तो हक़ है, तड़पो, लेकिन शोर न हो
✍️ डॉ पवन मिश्र
आह-ओ-फ़ुग़ाँ= विलाप
तअल्ली= डींग मारना
ज़ानू= गोद
No comments:
Post a Comment