Tuesday, 22 October 2024

ग़ज़ल- लेकिन शोर न हो

आह-ओ-फ़ुग़ाँ फ़रियाद सभी तुम कह दो लेकिन शोर न हो

अपनी चुप्पी मुझ तक आकर तोड़ो लेकिन शोर न हो


रहने दो दुनियावी नाज़ो नख़रे और तअल्ली सब

दिल की बातें कहनी हो तो कह दो लेकिन शोर न हो


रस्मों और रिवाज़ों के सारे बंधन ठुकराकर तुम

जब चाहो मुझसे मिलने आ जाओ लेकिन शोर न हो


रात जवां है, मैं हूँ, तुम हो, चांद-सितारे, सब तो हैं

अपना सर मेरे ज़ानू पे रक्खो लेकिन शोर न हो


हिज़्र उदासी तन्हाई बेचैनी सारे ग़म लेकर

दीवानों, तुमको तो हक़ है, तड़पो, लेकिन शोर न हो


✍️ डॉ पवन मिश्र


आह-ओ-फ़ुग़ाँ= विलाप

तअल्ली= डींग मारना

ज़ानू= गोद

No comments:

Post a Comment