Saturday, 19 October 2024

ग़ज़ल- अब मुझको मगहर जाना है

मुझको अपने घर जाना है

अब मुझको मगहर जाना है


मंदिर मस्ज़िद घूम लिये सब

अब खुद के भीतर जाना है


राम रमापति जपते-जपते

भवसागर से तर जाना है


दुनिया में बस नाम बचेगा

ज़िस्म सभी का मर जाना है


रंग-ओ-बू पर इतराना क्यों

इक दिन सब कुछ झर जाना है


✍️ डॉ पवन मिश्र

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