मुझको अपने घर जाना है
अब मुझको मगहर जाना है
मंदिर मस्ज़िद घूम लिये सब
अब खुद के भीतर जाना है
राम रमापति जपते-जपते
भवसागर से तर जाना है
दुनिया में बस नाम बचेगा
ज़िस्म सभी का मर जाना है
रंग-ओ-बू पर इतराना क्यों
इक दिन सब कुछ झर जाना है
✍️ डॉ पवन मिश्र
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