बात अख़बार तक नहीं पहुंची
बीच बाज़ार तक नहीं पहुंची
प्यास हद पार तक नहीं पहुंची
उनके रुख़सार तक नहीं पहुंची
आह तड़पी मेरी बहुत लेकिन
मेरे ग़मख़्वार तक नहीं पहुंची
जिंदगी फँस गयी किताबों में
ज्ञान के सार तक नहीं पहुंची
पैरहन तक तो आ गयी दुनिया
किंतु किरदार तक नहीं पहुंची
कोशिशें तो बहुत हुईं लेकिन
नींद बेदार तक नहीं पहुंची
जिंदगी रोज चल रही लेकिन
एक इतवार तक नहीं पहुंची
कह तो ली है मगर ग़ज़ल शायद
अपने मेआ'र तक नहीं पहुंची
✍️ डॉ पवन मिश्र
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