Monday, 28 October 2024

ग़ज़ल- अभी यह उन्स है प्यारे मुहब्बत दूर है तुमसे

अभी यह उन्स है प्यारे मुहब्बत दूर है तुमसे

अक़ीदत तक नहीं पहुँचे इबादत दूर है तुमसे


फ़क़त दो-चार दिन में छोड़ दें कैसे तकल्लुफ़ हम

अभी तारीफ़ ही ले लो शिकायत दूर है तुमसे


मेरे हमदम जरा सी दिल्लगी में रूठ जाते हो

तो इसके ये मआनी हैं ज़राफ़त दूर है तुमसे


सियासत में तुम्हे माना बुलंदी मिल गई लेकिन

अभी इंसानियत की यार रिफ़अत दूर है तुमसे


ये मेरा तजरिबा है ज़िंदगी का दोस्तों मानो

अगर माँ-बाप सँग हैं तो मुसीबत दूर है तुमसे


अभी तक तुम पवन पहुँचे रदीफ़-ओ-काफिया तक ही 

ग़ज़लगोई नहीं आसां लताफ़त दूर है तुमसे


✍️ डॉ पवन मिश्र


उन्स= लगाव, आकर्षण

अक़ीदत= श्रद्धा

तकल्लुफ़= औपचारिकता

ज़राफ़त= हँसी मज़ाक के प्रति समझ/अक्लमंदी

रिफ़अत= उत्कृष्टता, ऊंचाई

लताफ़त= ख़ूबी

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